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दिल्ली के आसमान में टकराये दो प्लेन | Delhi Mid-Air Collision Video | Fatal Collision 1996 Aircrash Case Study

INTRODUCTION

दिल्ली के आसमान में उड़ते हुए दो प्लेन की ऐसी भयानक टक्कर जिसमे 349 मासूम लोगो को अपनी जान गवानी पड़ी।  मौत के खौफनाक मंजर की ऐसी तस्वीर जिसे दिल्ली के लोग मरते दम तक नहीं भूल पाएंगे।  इतिहास में जब कभी हवाई दुर्घटनाओं की बात होगी तो चरखी दादरी में हुए दो प्लेन की टक्कर सबसे भयानक हादसे के रूप में सामने आएगी।

Case Study

दिल्ली का इंदिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट आज दुनिया  के सबसे आधुनिक और बिजी एयरपोर्ट  में शामिल है

जिससे हर साल लगभग 60 millions यात्री 58 domestic और  62 international शहरो के लिए उड़ान भरते है।  एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक हर साल लगभग 100 millions यात्री दिल्ली एयरपोर्ट से यात्रा करेंगे

लेकिन 1990 के दसक में दिल्ली एयरपोर्ट टेक्नोलॉजी और सुविधाओं के हिसाब से इतना विकसित नहीं था. हलाकि उस वक़्त भी आधे से जयादा भारतीय इंटरनेशनल उड़ान के लिए इसी एयरपोर्ट का इस्तेमाल करते थे, जिसके कारण दिल्ली का एयरस्पेस काफी बिजी रहता था।

2010 में अपने आधुनिकरण से पहले दिल्ली एयरपोर्ट का काफी बड़ा हिस्सा इंडियन एयर फाॅर्स के लिए रिज़र्व  था जिस कारण से एयरपोर्ट पर फ्लाइट के आने और जाने के लिए केवल एक ही एयरवे उपलब्ध था।

आम तोर पर इस तरह के बिजी एयरपोर्ट पर आने और जाने के लिए अलग अलग एयरवे होते है जिसके कारण फ्लाइट को मैनेज करना काफी आसान होता है.

इसके अलावा उस वक़्त दिल्ली एयरपोर्ट पर केवल एक ही राडार उपलब्द था जिसका मुख्य मकसद एयरपोर्ट पर फ्लाइट के ट्रैफिक को कण्ट्रोल करना था।  आम तोर पर बड़े एयरपोर्ट्स पर दो राडार होते है , पहले  राडार से फ्लाइट ट्रैफिक को कण्ट्रोल किया जाता है वही दूसरे राडार को आने और जाने वाली फ्लाइट्स की हाइट और स्पीड वगैरह जानने के लिए काम में लाया जाता है।  यही दोनों कारण हमारी आज की केस स्टडी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले है 

 12 November 1996, दिल्ली का इंदिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट , Saudi Arabian Airlines की Flight 763,  सऊदी अरबिया के Dhahran International Airport के लिए उड़ान भरने की तैयारी कर रही थी।  बोइंग 747 सीरीज के इस प्लेन में उस दिन 289 पैसेंजर्स के साथ 23 क्रू मेंबर्स भी सवार थे।  उस दिन इस फ्लाइट  का नेतृत्व  45 वर्षीय कप्तान Khalid Al-Shubaily कर रहे थे जिनका साथ First Officer Nazir Khan, और  Flight Engineer Ahmed Edrees दे रहे थे। 

उस दिन इस फ्लाइट में सफर करने वाले ज्यादातर लोग सऊदी में काम करने वाले वर्कर्स थे , जिसमे से जयादातर लोग हिंदुस्तानी और कुछ नेपाली नागरिक भी थे।  वैसे तो ये एक नार्मल उड़ान थी लेकिन उस दिन इस फ्लाइट  में सफर करने वाले यात्रिओं की नागरिकता को लेकर इमीग्रेशन डिपार्टमेंट में कुछ असमंझस के हालात बने हुए थे जिसके कारण फ्लाइट के departure में कुछ देरी भी हो रही थी

शाम के लगभग छ बजकर बीस  मिनट पर Saudi Arabian फ्लाइट ने अपना रोल ऑफ़  प्रोसेस किया और टैक्सी वे होते हुए फ्लाइट रनवे पर आ गयी। कंट्रोलर टावर से  permission मिलने के बाद लगभग  छ बजकर तीस  मिनट पर फ्लाइट ने दिल्ली एयरपोर्ट से टेकऑफ किया।

अपने निर्धारित फ्लाइट रूट को फॉलो करते हुए Saudi Arabian फ्लाइट ने मिडिल ईस्ट जाने के लिए west  direction में अपना climb शुरू किया.  उस दिन दिल्ली एयरस्पेस में आने और जाने वाली  फ्लाइट को 42 वर्षीय कंट्रोलर V K Dutta गाइड कर  रहे थे।  1980 में एयर ट्रैफिक कंट्रोलर के तोर पर जॉइन करने के बाद दत्ता ने अपने कैरियर में काफी उपलब्धिया और प्रोमोशंस हासिल किये थे।

एक बिजी एयरस्पेस होने के बावजूद कंट्रोलर दत्ता काफी सूझ भुज के साथ Saudi Arabian फ्लाइट को गाइड कर  रहे थे। 

जैसा की हम पहले ही जान चुके है की उन दिनों दिल्ली एयरपोर्ट पर आने और जाने वाली फ्लाइट के लिए केवल एक ही एयरवे था।

G -452 के नाम से निर्धारित ये एयरवे दिल्ली एयरपोर्ट से चरखी दादरी होते हुए वेस्ट साइड में जाता था और आने और जाने वाली सभी फ्लाइट सिर्फ इसी रूट का इस्तेमाल करती थी। 

हलाकि किसी भी तरह के Air Collision से बचने के लिए इस एयरवे से गुजरने वाली हर फ्लाइट के बीच में कम से  कम 1000 मीटर का हाइट डिस्टेंस होना अनिवार्ये था

कंट्रोलर V K दत्ता जब Saudi Arabian फ्लाइट को गाइड कर रहे थे ठीक उसी वक़्त kazakhstan airline  flight 1907 दिल्ली एयरपोर्ट पर लैंड करने के लिए आ रही थी। UN-76435 नाम से रजिस्टर  ये फ्लाइट 27 पैसेंजर्स और 10 क्रू मेंबर्स के साथ  kazakhstan के Chimkent Airport से उड़ कर दिल्ली आ रही थी।

ये एक चार्टेड फ्लाइट थी जिसमे यात्रा करने वाले जयादातर पैसेंजर्स kazakhstan नागरिकता वाले  रूसियन थे जो शॉपिंग करने के लिए दिल्ली आ रहे थे

kazakhstan airline  फ्लाइट को 44 वर्षीय कप्तान Alexander Cherepanov उड़ा  रहे थे जो 10000 फ्लाइंग hours  के साथ एक बहुत ही experienced पायलट थे ।

इसके अलावा फ्लाइट में  First Officer Ermek Dzhangirov और Flight Engineer Alexander Chuprov के साथ दो और तकनीकी लोग फ्लाइट क्रू का हिस्सा थे . ये एक बहुत ही बड़ा प्लेन था जिसे आमतोर पर भारी सामान ढोहने के लिए काम में लाया जाता था, लेकिन कुछ केबिन बदलाव करके इस फ्लाइट में कार्गो के साथ साथ पैसेंजर्स के लिए भी जगह बनाई गयी थी.

दिल्ली के एयरस्पेस में आते ही  kazakhstan airline  के रूट को कण्ट्रोल करने की जिम्मेदारी भी कंट्रोलर V K Dutta की थी, जो Saudi Arabian फ्लाइट के साथ साथ अब  kazakhstan airline को भी गाइड कर रहे थेकंट्रोलर Dutta ने Saudi Arabian फ्लाइट को 14000 feet की उचाई पर जा कर उसी हाइट पर उड़ते हुए आगे बढ़ने को कहा।  कंट्रोलर की इंस्ट्रक्शन के मुताबिक Saudi कप्तान फ्लाइट को 14000 फ़ीट पर ले जाकर उड़ाने लगा। 

जैसा की हमने शुरुआत में बताया की दिल्ली एयरपोर्ट पर सिर्फ एक ही प्राइमरी राडार उपलब्घ था जो सिर्फ मॉनिटर पर फ्लाइट को ब्लिंक करते हुए दर्शाता था।  Secondary राडार  ना उपलब्ध होने के कारण कंट्रोलर Dutta मॉनिटर पर फ्लाइट की  हाइट या स्पीड इत्यादि नहीं देख पा  रहे थे.

उस वक़्त दुनिया के लगभग सभी बड़े और बिजी एयरपोर्ट्स पर सेकेंडरी radar की सुविधा उपलब्ध थी, जिसके चलते airtraffic controllers प्लेन की position के साथ साथ उसकी स्पीड और हाइट को भी मॉनिटर पर देख  सकते थे. दिल्ली एयरपोर्ट  पर भी सेकंडरी राडार लगाने की मंजूरी मिल चुकी थी , लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ कारणों  के चलते इसे लगाने में देरी हो रही थी। 

सेकेंडरी radar ना होने के कारण कंट्रोलर Dutta पूरी तरह से फ्लाइट क्रू द्वारा दी जाने वाली information के आधार पर ही फ्लाइट को मॉनिटर और गाइड कर रहे थे. इसके अलावा उनके पास और कोई माध्यम नहीं था जिसका इस्तेमाल करके वो किसी फ्लाइट की सही हाइट या स्पीड का पता कर सके. इस तरह की सिचुएशन में फ्लाइट क्रू के साथ अच्छा तालमेल और communication होना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि कंट्रोलर किसी भी फ्लाइट की स्पीड या हाइट वगैरह जानने के लिए पूरी तरह से फ्लाइट क्रू पर ही निर्भर होता है।

Saudi Arabian फ्लाइट अब 14000 फ़ीट पर उड़ते हुए आगे बढ़ रही थी और वही kazakhstan airline भी अब धीरे धीरे नीचे आते हुए दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरने की तैयारी कर रही थी।  23000 फ़ीट पर उड़ते हुए kazakhstan airline की फ्लाइट को कंट्रोलर dutta ने 15000 फ़ीट की उचाई पर आने के लिए कहा ताकि 14000 फ़ीट पर उड़ रही Saudi Arabian फ्लाइट बिना किसी परेशानी के उसके नीचे से गुजर जाये।

International Civil Aviation के स्टैण्डर्ड को follow करते हुए कंट्रोलर dutta ने दोनों फ्लाइट्स को साफ़ साफ़ इंस्ट्रक्शन दी की वो अपनी निर्धारित हाइट पर ही उड़े ताकि दोनों फ्लाइट्स कम से कम 1000 फ़ीट की दूरी से एक दुसरे को क्रॉस कर पाये।

दिल्ली एयरपोर्ट जैसे इतने बड़े और बिजी एयरपोर्ट के ट्रैफिक को इतने साल कुशलता से सँभालने के कारण कंट्रोलर दत्ता इस तरह की sitautaion को भली भाँती समझते थे इसलिए उन्होंने kazakhstan airline को साफ़ साफ़ कहाँ की वो भी अपने नीचे से गुजरती हुई  Saudi Arabian फ्लाइट पर नज़र रखे।

लेकिन अब बात आती है इस दुर्घटना के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण कारण की।  kazakhstan airline के क्रू को इंग्लिश language अच्छी तरह नहीं आती थी जिस कारण ट्रैफिक कंट्रोलर के साथ communication करने में काफी दिक्कत हो रही थी

जहाँ कंट्रोलर Dutta अपनी सभी इंस्ट्रक्शन को बिलकुल साफ़ साफ़ समझा रहे थे वही kazakhstan airline के पायलट क्रू में कुछ confusion  के हालत बने हुए थे।  अच्छी तरह इंग्लिश ना आने के कारण पायलट्स कंटोलर Dutta के instructions को ढीक से  समझ नहीं पा रहे थे.

इंग्लिश के अलावा kazakhstan पायलट्स कंट्रोलर Dutta द्वारा बताई जा रही height level को भी ढीक से नहीं समझ पा रहे थे।  International Aviation standards को follow करते हुए कंट्रोलर Dutta height को feet में बता रहे थे , लेकिन उन दिनों kazakhstan पायलट्स height को meter में मापते थे , और इसलिए उन्हें कंट्रोलर Dutta द्वारा बताई जा रही हाइट को समझने और calculate करने में बहुत परेशानी आ रही थी 

और फिर वही हुआ जिसका डर था , इंग्लिश ना आने के कारण controller Dutta की बात न समझ पाने और मीटर और फ़ीट में confusion के कारण kazakhstan पायलट्स प्लेन को 15000 फ़ीट की बजाये 14000 फ़ीट की उचाई पर ले आये।

जहाँ Saudi Arabian फ्लाइट अपनी निर्घारित उचाई 14000 फ़ीट पर जा रही थी उसके ढीक opposite direction से kazakhstan फ्लाइट भी 14000 फ़ीट की उचाई से लैंड करने के लिए आ रही थी। 

आमतोर पर ऐसी हालात में  पायलट्स दूसरे प्लेन को देख कर भी बचने की कोशिश कर सकते है , लेकिन बदकिस्मती से ढीक उसी वक़्त दोनों प्लेन्स बादलो में प्रवेश कर जाते है जिसके कारण दोनों में से किसी भी फ्लाइट के पायलट्स opposite direction से आ रही फ्लाइट को नहीं दीख पाये

हादसे से कुछ seconds पहले kazakhstan फ्लाइट के पायलट को अपनी गलती का एहसास होता है और वो अपनी हाइट बढ़ाने की कोशिश करते है।  लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

भारी भरखम kazakhstan फ्लाइट का लेफ्ट विंग Saudi Arabian फ्लाइट के राइट इंजन और विंग को फाड़ता हुआ निकल जाता है।  एक बड़े धमाके के साथ Saudi Arabian फ्लाइट हवा में ही टुकड़े टुकड़े हो कर बिखर जाती है , वही kazakhstan फ्लाइट भी थोड़ा और आगे जा कर क्रैश हो जाती है। 

कई किलोमीटर के एरिया में दोनों प्लेन का मलबा और लासो के टुकड़े फ़ैल जाते है।  दोनों प्लेन्स में  से कोई भी जिन्दा नहीं बच पाया . तबाही के उस भयानक मंजर को चरखी दादरी के लोग जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे

इन सब से अनजान कंटोलर dutta अपने मॉनिटर पर पास आती दोनों फ्लाइट की dots को देख  रहे थे और मान रहे थे की आपस में मिलने के बाद ये दोनों फ्लाइट डॉट्स फिर से अलग अलग हो कर दूर चली जाएँगी।  लेकिन तभी अचानक दोनों फ्लाइट डॉट्स मॉनिटर से गायब हो जाती है। 

किसी अनहोनी की आशंका से परेशान कंट्रोलर dutaa बार बार दोनों फ्लाइट्स से कांटेक्ट करने की कोशिश करते है और कोई जवाब न मिलने के कारण उनकी चिंता बढ़ती चली जाती है।

उसी वक़्त वहां से गुजर रहा अमेरिकन एयरफोर्स प्लेन का पायलट कण्ट्रोल रूम में कॉल करके कहता है की उन्होंने अभी अभी आसमान में एक तेज़ धमाका और रौशनी देखि है।  और इसी के  साथ कंट्रोलर दत्ता का शक यकीन में बदल जाता है की दोनों फ्लाइट्स आपस में टकरा कर क्रैश हो चुकी है 

मानव इतिहास में दो प्लेन के हवा में टकराने की ये सबसे बड़ी दुर्घटना थी जिसमे 349 मासूम लोगो की जान चली गयी .

इस दुर्घटना के तुरंत बाद ही दोनों प्लान्स के ब्लैक बॉक्स को खोज निकला गया और भारत सरकार ने Delhi High Court judge Ramesh Chandra Lahoti की अगुवाई में Lahoti Commission का गठन करके इसकी जांच शुरू कर दी।  जांच रिपोर्ट में दुर्घटना का मुख्य कारण kazakhstan पायलट्स का कंट्रोलर dutta की instruction को ना फॉलो करना पाया गया।  कण्ट्रोल टावर की इंस्ट्रक्शन को ढीक से ना समझ पाने के कारण kazakhstan पायलट्स अपनी फ्लाइट को 15000 फ़ीट की बजाये 14000 फ़ीट ऊपर ले आये जिसके कारण ये हादसा हुआ।

ये हादसा इतना बड़ा और दुःखद था की इसकी जांच के तुरंत बाद Directorate General of Civil Aviation ने फ्लाइट सेफ्टी को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण नियम बनाये।  दिल्ली आने जाने वाली सभी फ्लाइट्स के लिए टि कस सिस्टम को अनिवार्य कर दिया गया।  TCAS एक ऐसा सिस्टम है जो दो प्लेन्स को हवा में एक दूसरे से टकराने से बचाता है।  प्लेन्स की हाइट और स्पीड का सही सही पता लगाने के लिए  दिल्ली एयरपोर्ट पर सेकेंडरी राडार को भी लगाया  गया।  इसके अलावा आने और जाने वाली फ्लाइट्स के लिए दिल्ली एयरपोर्ट पर दो अलग अलग airways बनाये गए ताकि दो प्लेन्स सुरक्षित गुजर सके और इस तरह की दुर्घटनाओ को रोका जा सके। 

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