INTRODUCTION
28 अप्रैल 1988 , अलोहा एयरलाइन्स की फ्लाइट नंबर 243 ने honululu जाने के लिए हवाई के Hilo International Airport से टेकऑफ किया। इस प्लेन को ये दूरी लगभग 1 घंटे से भी काम समय में तय करनी थी।
इस उड़ान के लिए उस दिन मौसम बिलकुल साफ़ था और प्लेन ने सामान्य तरीके से बिना किसी परेशानी के एयरपोर्ट से टेकऑफ किया। सब कुछ बिलकुल ठीक ठाक चल रहा था।
लेकिन उड़ान भरने के कुछ ही शनो बाद अचानक हुए एक धमाके से पूरा प्लेन हिल गया। इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता एक झटके के साथ फर्स्ट क्लास केबिन की छत उखड कर प्लेन से अलग हो गई।
अपने सर के ऊपर खुला आसमान देख कर पैसेंजर्स और केबिन क्रू की जान हलक़ में आ गईं।
क्या हवा के दभाव ने सभी पैसेंजर्स को प्लेन से बाहर खींच लिया? क्या प्लेन के हवा में ही टुकड़े हो गए ? क्या ये प्लेन इमरजेंसी लैंडिंग कर पाया ?
एविएशन दुनिया की इस दिल दहला देने वाली दुर्घटना के बारे में जानने के लिए बने रहिये हमारे साथ।
CASE STUDY
बोइंग 737 200 सीरीज का ये विमान 1969 में अलोहा एयरलाइन्स को दिया गया था। अब तक इस विमान ने कुल मिला कर 35,496 घंटे की हवाई यात्रा पूरी की थी। लेकिन अपनी अब तक की सर्विस में ये विमान ज्यादातर छोटी दूरी की यात्रा के लिए ही इस्तेमाल किया गया था , जिस कारण से इस विमान ने लगभग 90000 से भी ज्यादा बार takeoff और लैंड किया था। अपनी इतनी सारी छोटी दूरी की फ्लाइट्स के कारण ये विमान अपनी निर्धारित सीमा से भी तीन गुना ज्यादा बार टेकऑफ और लैंड कर चूका था .
दुर्घटना वाले दिन ये विमान तीन बार Honolulu से Hilo की यात्रा कर चूका था।
अपनी चौथी उड़ान के लिए उस दिन फ्लाइट 243 में 89 पैसेंजर्स के साथ 6 क्रू मेंबर्स भी सवार थे. एयरपोर्ट पर सब कुछ सामान्य तरीके से चल रहा था और ग्राउंड सेफ्टी स्टाफ ने हवाई जहाज का बाहरी निरिक्षण पूरा किया। अपनी रिपोर्ट में सेफ्टी स्टाफ ने एयरप्लेन में किसी भी तरह की तकनिकी या बॉडी पार्ट खराबी का कोई जिक्र नहीं किया।
कुछ वक़्त पहले ही इस प्लेन ने अपनी निर्धारित जांच के अनुसार Boeing Service Bulletin रिपोर्ट को पास किया था। और इस जांच में भी प्लेन में किसी तरह की खराबी का कोई जिक्र नहीं था।
फ्लाइट का नेतृत्व 44 वर्षीय कप्तान Robert Schornstheimer कर रहे थे जिनके पास 8,500 flight hours का कुशल फ्लाइंग अनुभव था। co -pilot के तोर पर फ्लाइट में 36 वर्षीय फर्स्ट अफसर Madeline Tompkins सवार थे, जिनके पास इस तरह के Boeing 737 प्लेन को उड़ाने का 3500 घंटे का अनुभव था। कुल मिला कर दोनों पायलट्स को इस तरह के Boeing 737 प्लेन को उड़ाने का 10000 घंटो से भी ज्यादा का अनुभव था
बाकी क्रू मेंबर्स के साथ फ्लाइट में उस दिन flight attendant Clarabelle Lansing भी सवार थी।
धीरे धीरे कर सभी पैसेंजर्स प्लेन में सवार होने लगे। इसी दौरान बोर्डिंग ब्रिज से गुजरते हुए एक पैसेंजर की नज़र प्लेन के बाहरी fuselage में आई हुई दरार पर पड़ती है , जिसे देख कर वो थोड़ा घबरा भी जाती है। लेकिन ये सोच कर की शायद एयरपोर्ट स्टाफ को इसकी जानकारी पहले से ही होगी , वो किसी भी फ्लाइट क्रू या एयरपोर्ट स्टाफ से इसका जिक्र नहीं करती।
सभी पैसेंजर्स के सवार होने के बाद दोपहर के लगभग 1 बजे फ्लाइट ने अपना roll off process शुरू किया। टैक्सी वे से होते हुए लगभग 1 बजकर 25 मिनट पर फ्लाइट 243 ने Hilo International Airport से टेकऑफ किया।
फ्लाइट रूट को follow करते हुए पायलट प्लेन को उसकी निर्द्गारित हाइट पर ले जाने के लिए climb शुरू करते है। आमतोर पर जैसा हर फ्लाइट में होता है , टेकऑफ के बाद जबतक प्लेन अपना climb पूरा करके अपनी निर्धारित हाइट तक नहीं पहुँचता , पैसेंजर के लिए सीट बेल्ट पहने रखना अनिवार्य होता है। इसलिए फ्लाइट 243 के सभी पैसेंजर्स ने भी अपनी सीट बेल्ट्स पहनी हुई थी।
धीरे धीरे अपनी हाइट बढ़ाता हुआ प्लेन जैसे ही 24000 फ़ीट की उचाई पर पहुंचता है , तो अचानक एक तेज़ धमाका होता है और एक झटके के साथ first class cabin की पूरी छत उखड कर प्लेन से अलग हो जाती है।
अचानक हुए धमाके के बाद प्लेन को सँभालते हुए पायलट जब पीछे मुड़ कर देखते है तो उनके होश उड़ जाते है। कॉकपिट का दरवाज़ा और फर्स्ट क्लास केबिन की छत उखड कर अलग हो चुकी थी और पायलट को अपने पीछे खुला आसमान दिखाई दे रहा था। तेज़ हवा के साथ पूरे कॉकपिट में प्लेन के टुकड़े इधर उधर उड़ रहे थे।
अपनी आँखों के सामने साक्षात मौत देख रहे फर्स्ट क्लास केबिन के पैसेंजर सीट बेल्ट के सहारे अपनी सीट पर झूल रहे थे। 300 mile प्रति घंटे की स्पीड से हवा सब कुछ प्लेन के बाहर खींच रही थी। छत उखड़ने के बाद अचानक हुए decompression के कारण प्लेन के लेफ्ट साइड का एक बड़ा हिस्सा भी टूट कर प्लेन से अलग हो चूका था।
किस्मत से सीट बेल्ट sign ON होने के कारण सभी पैसेंजर्स ने सीट बेल्ट पहनी हुई थी जिसके कारण खुशकिस्मती से सभी पैसेंजर्स अपनी सीट से चिपके रहे. लेकिन केबिन क्रू इतने खुशकिस्मत नहीं थे। एयरहोस्टेस Clarabelle Lansing बड़ी ही मुश्किल से एक साइड पैनल को पकड़ कर प्लेन से बाहर ना खींचे जाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हवा के प्रेशर ने कुछ ही क्षणों बाद Clarabelle Lansing को प्लेन से बाहर खींच लिया।
एक दूसरी एयरहोस्टेस Michelle Honda को भी हवा के प्रेशर ने केबिन फ्लोर पर पटक दिया , लेकिन खुशकिस्मती से एयरहोस्टेस Michelle ने पैसेंजर सीट को पकड़ कर अपने आप को प्लेन से बाहर खींचने से बचा लिया। मुश्किल से पैसेंजर सीट को पकडे हुए जिंदगी और मौत से लड़ते हुए एयरहोस्टेस Michelle अभी भी पैसेंजर्स को शांत रहने और अपने सीट को पकडे रखने की सलाह दे रही थी।
वही कॉकपिट में अपने होश सँभालते हुए पायलट ने अपने ऑक्सीजन मास्क लगा कर फिर से प्लेन को कण्ट्रोल करने की कोशिश शुरू कर दी। लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हो गया की प्लेन के काफी कंट्रोल्स फेल हो चुके थे।
प्लेन धीरे धीरे उनके काबू से बाहर होता जा रहा था। हवा के थपेड़ों के बीच 24000 फ़ीट की उचाई पर प्लेन तेज़ी से डगमगाने लगता है।
वही इतनी उचाई पर केबिन decompression और प्लेन की तेज़ स्पीड के कारण पैसेंजर्स के लिए सांस लेना मुश्किल हो चूका था। आमतोर पर हवा में केबिन decompression के हालात में पैसेंजर्स को सांस लेने में मदद के लिए केबिन की छत से ऑक्सीजन मास्क बाहर आ जाते है। लेकिन यहाँ तो पूरी छत ही उड़ चुकी थी। इतनी तेज़ हवा और ऑक्सीजन की कमी के कारण पैसेंजर्स कभी भी मौत के मुँह में जा सकते थे।
First Officer तुरंत ही प्लेन के रेडियो को इमरजेंसी फ्रीक्वेंसी पर सेट करके होनोलुलु एयरपोर्ट को mayday कॉल करता है और पास के maui एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंड करने की जानकारी देता है. लेकिन कॉकपिट में हवा का शोर इतना ज्यादा था की होनोलुलु ATC कंट्रोलर कुछ भी समझ नहीं पाता। शोर इतना ज्यादा था की पायलट्स भी एक दूसरे के आवाज़ नहीं सुन पा रहे थे और हाथ के इशारो में बात करते हुए पायलट्स ने तेज़ी से प्लेन को नीचे लाने का decission लिया।
बिना कोई वक़्त गवाए प्लेन की नोज को डाउन करके पायलट्स तेज़ी से प्लेन को नीचे लाने लगते है। पायलट्स इतनी तेज़ी से प्लेन को नीचे लाते है की एक वक़्त पर प्लेन 4100 फ़ीट प्रति मिनट की स्पीड से नीचे आने लगता है. आमतोर पर पैसेंजर्स प्लेन 3000 फ़ीट प्रति मिनट की स्पीड से ही नीचे आते है ताकि पायलट्स प्लेन को कण्ट्रोल कर सके और प्लेन क्रैश ना हो। लेकिन अपने साथ साथ सभी पैसेंजर्स को मौत के मुँह में जाने से बचाने के लिए पायलट्स के पास प्लेन को तेज़ी से नीचे लाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था।
तेज़ी से नीचे आते हुए प्लेन जब 14000 फ़ीट की उचाई पर पहुँचता है तो किस्मत से पायलट्स maui एयरपोर्ट पर इमरजेंसी service center से contact करने में सफल हो जाते है और उन्हें इमरजेंसी लैंडिंग की जानकारी देते हुए एयरपोर्ट पर एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड को तैयार रखने के लिए कहते है।
ऑक्सीजन की कमी के कारण फर्स्ट क्लास केबिन में अब पैसेंजर्स का धम घुटने लगता है। लेकिन जैसे जैसे प्लेन 10000 की उचाई से नीचे आने लगता है , कप्तान प्लेन की स्पीड काम कर देते है जिसके कारण पैसेंजर्स को सांस लेने के लिए थोड़ी बहुत ऑक्सीजन मिलने लगती है।
स्पीड को कम करते हुए कप्तान प्लेन को रनवे की तरफ लाने लगते है। लेकिन स्पीड कम करते हुए प्लेन जैसे जैसे 195 miles प्रति घंटे की स्पीड पर पहुँचता है तो प्लेन काबू से बाहर होने लगता है। जल्द ही पायलट्स को एहसास हो जाता है की अगर उन्हें प्लेन को क्रैश होने से बचाना है तो उन्हें प्लेन की स्पीड को बढ़ाना होगा। लेकिन इतनी तेज़ स्पीड पर प्लेन को लैंड करवाना भी किसी खतरे से कम नहीं था। सुरक्षित लैंड करने के लिए आमतौर पर प्लेन को 150 miles प्रति घंटे की स्पीड पर लैंड करवाना होता है।
पायलट्स decide करते है की क्रैश होने से अच्छा है की वो प्लेन को तेज़ स्पीड पर ही लैंड कर दे।
कप्तान first officer Tompkins को लैंडिंग गियर डाउन करने के लिए कहते है, जिसके बाद first officer तुरंत ही लैंडिंग गियर knob को डाउन कर देते है।
लेकिन लैंडिंग गियर knob को डाउन करने के बावजूद भी front लैंडिंग गियर लाइट ग्रीन नहीं होती , जिसका मतलब होता है की लैंडिंग गियर डाउन नहीं हो पाएं है। ये देख कर कप्तान तुरंत ही manual lever से लैंडिंग गियर को डाउन करने की कोशिश करते है। बार बार कोशिश करने के बावजूद भी लैंडिंग गियर लाइट ग्रीन नहीं होती। आमतौर पर ऐसे हालात में पायलट्स कॉकपिट में लगे कैमरा से भी चेक कर सकते है की लैंडिंग गियर डाउन है या नहीं। लेकिन बदकिस्मती से वो कैमरा भी fail हो चूका था।
अब पायलट्स के पास ये जानने का कोई तरीका नहीं था की क्या front landing gear डाउन हुआ है या नहीं। कप्तान और समय बर्बाद नहीं करना चाहते थे और वो बिना ये जाने की फ्रंट लैंडिंग गियर डाउन हुआ है या नहीं , लैंड करने का फैसला करते है।
अगर फ्रंट लैंडिंग गियर वाक़ई में डाउन नहीं हुआ होता और प्लेन इतनी स्पीड से लैंड करता तो उसका रनवे पर क्रैश होना पक्का था। वैसे भी इन हालात में पायलट्स के पास और कोई दूसरा चारा नहीं था। पायलट्स कोई भी risk लेकर सिर्फ प्लेन को लैंड करवाना चाहते थे
लेकिन किस्मत से लैंडिंग गियर पहले ही डाउन हो चूका था और सिर्फ सिस्टम की खराबी के कारण कण्ट्रोल पैनल में ग्रीन लाइट नहीं आ रही थी
और हवा में हुए उस धमाके के लगभग 13 मिनट बाद , तेज़ स्पीड से हवा में लहराता हुआ प्लेन आख़िरकार रनवे को टच करता है। कुछ दूर तक रनवे पर दौड़ने के बाद प्लेन सही सलामत रुक जाता है।
इमरजेंसी सर्विसेज के साथ साथ एयरपोर्ट के किसी भी कर्मचारी को अपनी आखों पर यकीन नहीं होता की परखचे उड़ा हुआ एक प्लेन कैसे सही सलामत लैंड कर सकता है। लेकिन किसी ने सही ही कहा है की जाखों राखे साइयाँ मार सके ना कोई।
प्लेन में सवार 89 पैसेंजर्स में से 65 पैसेंजर्स को इस हादसे में चोट आती है , उनमे से 8 पैसेंजर्स को serious हालात में चोट लगती है
दुरभाग्य से एयरहोस्टेस clarabella lensing की इस हादसे में मौत हो जाती है और बदकिस्मती से उनकी बॉडी भी कभी नहीं मिल पाई
प्लेन इतनी बुरी तरह से शतीग्रस्त हो चूका था की उसको रिपेयर करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था
ये हादसा इतना भयानक और हैरतंगेज़ था की पलक झपकते ही पूरी दुनिया में इसकी खबर फ़ैल गयी और तुरंत ही इसकी जांच शुरू कर दी गयी। जांच कर्ताओं के सामने सबसे बड़ा सवाल यही था की कैसे एक भारी भरकम jet airplane की छत हवा में उखड कर प्लेन से अलग हो गई।
आमतोर पर एयरप्लेन fuselage का बाहरी हिस्सा 2 . 5 mm मोटी metal sheet से बना होता है। अगर आसान भाषा में समझने की कोशिश करे तो ये मोटाई इतनी होती है जितना अगर 2 क्रेडिट कार्ड को एक दूसरे के ऊपर रख दे।
4 मीटर लम्बे और 2 मीटर चौड़े मेटल की इन प्लेट्स को एक दूसरे से मेटल रीबेट्स की सहायता से जोड़ा जाता है। इसलिए आमतौर पर ऐसे हालात में जॉइंट के किनारे सबसे कमजोर जगह होती है और इसलिए जांच कर्ताओ का सबसे पहला शक इन्ही जॉइंट्स एरिया की तरफ जाता है।
इसके बाद जांचकर्ता जब सभी पैसेंजर्स से पूछताछ करते है तो वही पैसेंजर्स जिसने बोर्डिंग करते वक़्त प्लेन की दीवार में क्रैक देखा था वो उन्हें इसके बारे में बताती है।
वो पैसेंजर जिस जगह दरार की बात कहती है जांच कर्ताओ को भी अपनी जांच में ढीक उसी जगह से प्लेन में क्रैक आने का पता चलता है। इतनी उचाई पर हवा के तेज़ दबाव के कारण इसी क्रैक से प्लेन की छत उखड कर अलग हो गई थी।
अब सबसे बड़ा सवाल ये था की कुछ दिन पहले ही हुई सुरक्षा जांच के बावजूद क्यों किसी भी service inspector को प्लेन में आई इस दरार का पता नहीं चला ? और ये खुलासा होता है की ये गलती इसलिए हुई क्योंकि प्लेन कंपनी जांच में होने वाले खर्चे को कम से कम करना चाहती थी। इसलिए fedral aviation के नियमो के अनुसार केवल जरूरी जगह जैसे प्लेन के आगे के हिस्से को ही चेक करना अनिवार्य था। प्लेन में लगे बाकी सभी जॉइंट को चेक करना या नहीं करना , ये एयरलाइन की मर्ज़ी पर निर्भर था।
हलाकि इस प्लेन ने 35496 घंटो का समय एक ऐसे समुंद्री रूट पर फ्लाई करने में गुज़ारा था जहाँ वातावरण बहुत ही नमी और नमक से भरा हुआ था। ऐसा मौसम किसी भी मेटल में जंग लगाने के लिए बहुत घातक होता है। लेकिन इस सबके बावजूद भी aloha airlines ने अपने प्लेन्स की रेगुलर और पूरी जांच करना जरूरी नहीं समझा।
maintenace के दौरान हुई इस तरह की भारी मानवीय गलतियों के कारण ही ये भनायक हादसा हुआ। जांच में पाई गई गलतियां इतनी भयानक और खतरनाक थी की अमेरिका सरकार ने तुरंत ही पूरे maintenace process को बदलने के निर्देश दे दिए। एक नई Airwortthness Task Force का भी घटन कर दिया गया जिसका मुख्य उदेस्य सभी एयरप्लेन को अच्छी तरह से चेक करना था। इस नई टीम की जांच के दौरान अगर किसी एक प्लेन में भी कोई खराबी पाई जाती है तो पूरी एयरलाइन के सभी प्लेन की दोबारा जांच की जा सकती थी।
एयरलाइन्स industry में ये एक बहुत ही बड़ा और महत्वपूर्ण बदलाव था लेकिन दुर्भाग्य से एयरहोस्टेस clarabella lensing को इसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी। इस हादसे में पायलट्स के साथ साथ पूरी केबिन क्रू टीम ने बहुत ही बहादुरी से अपने काम को अंजाम दिया था जिसके लिए उन्हें बहुत सारे बहादुरी पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।